श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की कहानी I The Story of Kedarnath Jyotirling I kedarnath jyotirlinga

1 year ago
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हिंदू धर्म के पुराणों के अनुसार शिव भगवान ने प्रकृति के कल्याण हेतु भारत वर्ष में 12 जगहों पर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए। उन 12 जगह पर स्थित शिवलिंग को ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा जाता है जिनमें से पंचम ज्योतिर्लिंग श्री केदारनाथ ज्योर्लिंग हैं , भारत में श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। हिमालय पर्वत की गोद में स्थित केदारनाथ धाम के कपाट श्रद्धालुओं के लिए 6 माह के लिए खुलते हैं और बाद में सर्दियों में भारी बर्फबारी के बाद यहां आने का रास्ता बंद हो जाता है। यहां के मुश्किल मौसम के कारण ये मंदिर अप्रैल से नवंबर महीने के बीच ही खुलता है। केदारनाथ ज्योतिर्लिंग , परम पवित्र बारह ज्योतिर्लिंग में से पंचम ज्योर्लिंग होने के साथ ही साथ , उत्तराखंड में स्तिथ चार धाम और पांच केदार धामों में से ही एक हे केदारनाथ की बड़ी महिमा है।
उत्तराखण्ड में बद्रीनाथ और केदारनाथ-ये दो प्रधान तीर्थ हैं, दोनो के दर्शनों का बड़ा ही माहात्म्य है। केदारनाथ के संबंध में लिखा है कि जो व्यक्ति केदारनाथ के दर्शन किये बिना बद्रीनाथ की यात्रा करता है, उसकी यात्रा निष्फल जाती है और केदारनाथ सहित नर-नारायण-मूर्ति के दर्शन का फल समस्त पापों के नाश पूर्वक जीवन मुक्ति की प्राप्ति बतलाया गया है। कत्यूरी शैली में बने पत्थरों के इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पाण्डव वंश के राजा जनमेजय ने कराया था। जनमेजय महाभारत के अनुसार कुरुवंश के राजा थे। महाभारत युद्ध में अर्जुनपुत्र अभिमन्यु जिस समय वीरगति को प्राप्त हुए, उसकी पत्नी उत्तरा गर्भवती थी। उसके गर्भ से राजा परीक्षित का जन्म हुआ जो महाभारत युद्ध के बाद हस्तिनापुर की गद्दी पर बैठे। जनमेजय इसी परीक्षित तथा मद्रावती के पुत्र थे। यहां स्थित स्वयंभू शिवलिंग अति प्राचीन है। कहा जाता है कि आठवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था।
केदारनाथ धाम में हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। इस धाम के प्रति लोगों की अटूट श्रद्धा और विश्वास है। केदारनाथ धाम मंदिर तीनों तरफ से पहाड़ों से घिरा है। यहाँ पर पांच नदियां मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी इनमें शामिल हैं। इन नदियों में से कुछ को काल्पनिक माना जाता है। इस इलाके में मंदाकिनी ही साफ तौर पर दिखाई देती है। मंदाकिनी नदी का उद्गम चौराबारी हिमनद के कुंड से हुआ है
केदारनाथ मंदिर को लेकर दो कथाएं प्रसिद्ध हैं। पहली कहानी के अनुसार केदार के शिखर पर भगवान विष्णु के अवतार महा तपस्वी नर और नारायण यहां तपस्या करते थे। इनकी आराधना से खुश होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए। और उनकी प्रार्थना के अनुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में उसी स्थान पर सदा वास करने का वचन दिया। दूसरी कहानी के अनुसार माना जाता है कि महाभारत के युद्ध को जीतने के बाद पांडवों पर परिवार के सदस्यों की हत्या का पाप लगा जिसकी वजह से पांडव पाप से मुक्त होना चाहते थे और भगवान शिव का आशीर्वाद पाना चाहते थे। भगवान शिव के दर्शन के लिए कैलाश गए पर उन्हें भगवान शिव नहीं मिले। पांडव भगवान शिव को ढूंढते ढूंढते हिमालय जा पहुंचे भगवान शिव पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे। इसलिए मैं वहां से अंतर्ध्यान हुए पांडव भी अपनी लगन के पक्के थे और भगवान शिव का पीछा करते-⁠करते वहां पहुंच गए जहा शिव भगवान थे , भगवान शिव ने तब बैल का रूप धारण किया और पशुओं के झुंड में जाकर मिल गए। पांडवों को इस बात का संदेह हो गया था। तभी भीम ने अपना विशालतम रूप धारण करके दोनों पहाड़ों पर अपने पैर फैला दिया। यह सब देखकर सभी गाय बैल तो भीम के पैर के नीचे से निकल गए लेकिन शंकर जी भीम के पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं थे भीम ने अपने बल से बैल रूपी शंकर जी को पकड़ा लेकिन वह धरती में समाने लगा। तब भीम ने बैल की पीठ का भाग पकड़ लिया। भगवान शंकर पांडवो की भक्ति और दृढ़ संकल्प को देखकर बहुत खुश हुए। उन्होंने उसी समय दर्शन देकर पांडवों को पाप से मुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शिव बैल की पीठ की आकृति पिंड के रूप में श्री केदार धाम में पूजे जाते हैं।

SHREE SOMNATH JYOTIRLING : https://www.youtube.com/watch?v=a4gq5X10lVQ&t=11s
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