Dwadash Jyotirlinga Shree Somnath Jyotirling द्वादश ज्योतिर्लिंग Bhagwan Shiv Jyotirling

1 year ago
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द्वादश ज्योतिर्लिंग
शिव पुराण के अनुसार, भगवान शिव लोक कल्याण के लिए लिंग के रूप में वास करते हैं और भगवान शिव के बारह विग्रहों को द्वादश ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। भारतवर्ष में यह 12 ज्योतिर्लिंग अलग-अलग स्थानों पर स्थित हैं। इनमें सर्वप्रथम श्री सोमनाथ जी का स्मरण किया जाता है। श्रावण माह में ज्योतिर्लिंगों के दर्शन और पूजन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु उमड़ते हैं। मान्यता है कि भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
1 सोमनाथ ज्योतिर्लिंग
2 मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग
3 श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
4 ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग
5 केदारनाथ ज्योतिर्लिंग
6 भीमशंकर ज्योतिर्लिंग
7 विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग
8 त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग
9 बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग
10 नागेश्वर ज्योतिर्लिंग
11 रामेश्वर ज्योतिर्लिंग
12 धुष्मेश्वर ज्योतिर्लिंग

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग− गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में जूनागढ़ के पास वेरावल के समुद्र तट पर एक विशाल मंदिर में श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग है। कहा जाता है कि यहां भगवान शिवजी ने चंद्रमा को दक्ष प्रजापति के शाप से मुक्त किया था। इसी स्थल पर भगवान श्रीकृष्ण ने एक शिकारी के तीर से अपने तलवे को बिंधवाया था और अपनी सांसारिक लीला समाप्त की थी। सोमनाथ जी का मंदिर अपने वैभव और समृद्धि के लिए भी विख्यात रहा है। इस मंदिर को कई बार देशी−विदेशी हमलावरों ने भी अपना निशाना बनाया। श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के बारे में जो कथा कही जाती है वह इस प्रकार है− ब्रह्मा के पुत्र दक्ष प्रजापति ने अपनी 27 नक्षत्र कन्याओं का विवाह चंद्रमा से एक साथ ही किया था। परंतु चंद्रदेव की पसंद रोहिणी थी। रोहिणी की अन्य बहनें चंद्र देव की ओर से अनदेखी किए जाने से दुखी रहती थीं। जब दक्ष प्रजापति तक यह बात पहुंची तो उन्होंने चंद्र देव को सभी से समान व्यवहार करने के लिए समझाया। लेकिन जब चंद्र देव पर कोई असर नहीं पड़ा तो दक्ष ने चंद्र देव को क्षय रोग से ग्रस्त हो जाने का शाप दे दिया। इससे चंद्र का शरीर निरंतर घटने लगा। संसार में चांदनी फैलाने का उनका काम रुक गया। सभी जीव कष्ट उठाने लगे और दया की पुकार करने लगे। चंद्रदेव ने सभी देवताओं, महर्षियों आदि को अपनी मदद के लिए पुकारा परंतु कोई उपाय नहीं मिला। इससे असहाय देवता चंद्र को लेकर ब्रह्माजी की शरण में पहुँचे। ब्रह्माजी ने चंद्रमा को अन्य देवताओं के साथ प्रभास क्षेत्र में सरस्वती के समुद्र से मिलन स्थल पर जाकर मृत्युंजय भगवान शिव की आराधना करने को कहा। इस पर चंद्रमा ने प्रभास क्षेत्र में देवताओं के साथ जाकर छह मास तक दस करोड़ महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया। चंद्र देव की आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव और माता पार्वती वहां प्रकट हुए और चंद्र देव को अमरता का वरदान दिया। दक्ष के शाप का असर उन्होंने यह वरदान देकर कम कर दिया कि महीने के पंद्रह दिनों में चंद्र देव के शरीर का थोड़ा−थोड़ा क्षय घटेगा और इन पंद्रह दिनों को कृष्ण पक्ष कहा जाएगा। बाद की पंद्रह तिथियों में रोज चंद्र देव का शरीर थोड़ा−थोड़ा बढ़ते हुए पंद्रहवें दिन पूरा हो जाएगा। इन पंद्रह दिनों को शुक्ल पक्ष कहा जाएगा। इस वरदान से चंद्र देव का संकट टल गया और वह फिर से समूचे जगत पर चांदनी बरसाने लगे। इस दौरान चंद्र देव और अन्य देवताओं ने भगवान शिव से माता पार्वती समेत वहीं वास करने की प्रार्थना की, जिसे भगवान शिव ने स्वीकार कर लिया और वहीं वास करने लगे।
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