एक दिन की साधना | कुञ्जिका स्तोत्र साधना विधान

1 year ago
3

एक दिन की साधना | कुञ्जिका स्तोत्र साधना विधान

कुञ्जिका स्तोत्र एक अत्यधिक प्रभावशाली स्तोत्र है, जो माँ भगवती जगदम्बा दुर्गा का है। माँ दुर्गा को जगत माता का दर्जा दिया गया है। माँ दुर्गा को ही आदिशक्ति भी कहा जाता है। इस स्तोत्र के पाठ मात्र से ही सम्पूर्ण दुर्गा—पाठ का फल प्राप्त होता है। यह स्तोत्र स्तम्भन, मारण, मोहन, शत्रुनाश, सिद्धि-प्राप्ति, विजय-प्राप्ति, ज्ञान-प्राप्ति अर्थात सभी क्षेत्रों में प्रवेश की महाकुञ्जी है। प्रतिदिन प्रातःकाल सिद्धकुञ्जिका स्तोत्रम् का पाठ करने से सभी प्रकार के विघ्न-बाधा नष्ट हो जाते हैं व परम सिद्धि प्राप्त होती है। इसके पाठ से काम-क्रोध का मारण, इष्टदेव का मोहन, मन का वशीकरण, इन्द्रियों की विषय-वासनाओं का स्तम्भन और मोक्ष-प्राप्ति हेतु उच्चाटन आदि कार्य सफल होते हैं। कुञ्जिका स्तोत्र वास्तव में सफलता की कुञ्जी ही है। सप्तशती का पाठ इसके बिना पूर्ण नहीं माना जाता है। षटकर्म में भी कुञ्जिका रामबाण की तरह कार्य करता है। इस स्तोत्र को जागृत या सिद्ध स्तोत्र कहा गया है, जिसका मतलब है कि यह स्वयंसिद्ध है, आपको इसे सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है। परन्तु जब तक इसकी ऊर्जा को स्वयं से जोड़ न लिया जाए, तब तक इसके पूर्ण प्रभाव कम ही दिख पाते हैं। आप किसी भी साधना को करते हैं तो यह आवश्यक है कि आप मूल साधना को कम-से-कम ४-५ बार करें और उसके बाद उसकी निरन्तरता बनाए रखने के लिये नित्य कवच या मन्त्र का कुछ मात्रा में पाठ या जाप करें। विशेषतया कवच या स्तोत्र आदि की सिद्धि १००० पाठ से हो जाती है और इस तरह ४ या ५ बार में कुल चार या पाँच हजार पाठ सम्पन्न हो जाते हैं। कुछ कवचों और स्तोत्रों में उनकी पाठ संख्या दी गई होती है। इन सबके के बाद ही आप कवच या स्तोत्र में लिखे प्रयोग आदि को करने की पात्रता अर्जित करते हैं।

Loading comments...