सामान्यज्ञान
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रामचरितमानस (उत्तरकाण्ड )#full ramayan#ramanand sagar
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उत्तरकाण्डराम कथा का उपसंहार है।सीता,लक्ष्मणऔर समस्तवानरसेनाके साथ रामअयोध्यावापस पहुँचे।रामका भव्य स्वागत हुआ,भरतके साथ सर्वजनों में आनन्द व्याप्त हो गया। वेदों औरशिवकी स्तुति के साथ राम काराज्याभिषेकहुआ। अभ्यागतों की विदाई दी गई। राम ने प्रजा को उपदेश दिया और प्रजा ने कृतज्ञता प्रकट की। चारों भाइयों के दो दो पुत्र हुये।रामराज्यएक आदर्श बन गया।
उपरोक्त बातों के साथ ही साथ गोस्वामीतुलसीदासजी ने उत्तरकाण्ड में श्री राम-वशिष्ठ संवाद,नारदजी का अयोध्या आकर रामचन्द्र जी की स्तुति करना, शिव-पार्वती संवाद,गरुड़मोह तथा गरुड़ जी काकाकभुशुण्डिजी से रामकथा एवं राम-महिमा सुनना, काकभुशुण्डि जी के पूर्वजन्म की कथा, ज्ञान-भक्ति निरूपण, ज्ञानदीपक और भक्ति की महान महिमा, गरुड़ के सात प्रश्न और काकभुशुण्डि जी के उत्तर आदि विषयों का भी विस्तृत वर्णन किया है।
जहाँ तुलसीदास जी ने उपरोक्त वर्णन लिखकर रामचरितमानस को समाप्त कर दिया है वहीं आदिकवि वाल्मीकि अपने रामायण में उत्तरकाण्ड में रावण तथा हनुमान के जन्म की कथा,सीता का निर्वासन,राजा नृग, राजा निमि, राजा ययाति तथा रामराज्य में कुत्ते का न्याय की उपकथायें,लवकुश का जन्म,राम के द्वारा अश्वमेघ यज्ञ का अनुष्ठान तथा उस यज्ञ में उनके पुत्रों लव तथा कुश के द्वारा महाकवि वाल्मीकि रचित रामायण गायन, सीता का रसातल प्रवेश,लक्ष्मण का परित्याग,५१५ ५१८ का भी वर्णन किया है। वाल्मीकि रामायण में उत्तरकाण्ड का समापन राम के महाप्रयाण के बाद ही हुआ है।उत्तरकांड को लेकर कई तरह के विवाद भी है। ऐसा माना जाता हैं की उत्तरकांड मूल वाल्मीकि रामायण का हिस्सा नहीं हैं। और इसमें कई कहानियां बाद में जोड़ी गई जो अलग अलग लेखकों द्वारा लिखी गई कहानियों को जोड़ कर तैयार किया गया हैं। उत्तरकांड मूल रामायण का हिस्सा नहीं हैं इसको लेकर कई विद्वान एकमत हैं।
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लंकाकाण्ड (यूद्धकाण्ड ) रामचरितमानस#ramayan
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जाम्बवन्त के आदेश से नल-नील दोनों भाइयों ने वानर सेना की सहायता से समुद्र पर पुल बांध दिया। श्री राम ने श्री रामेश्वर की स्थापना करके भगवान शंकर की पूजा की और सेना सहित समुद्र के पार उतर गये। समुद्र के पार जाकर राम ने डेरा डाला। पुल बंध जाने और राम के समुद्र के पार उतर जाने के समाचार से रावण मन में अत्यन्त व्याकुल हुआ। मन्दोदरी के राम से बैर न लेने के लिये समझाने पर भी रावण का अहंकार नहीं गया। इधर राम अपनी वानरसेना के साथ मेरु पर्वत पर निवास करने लगे। अंगद राम के दूत बन कर लंका में रावण के पास गये और उसे राम के शरण में आने का संदेश दिया किन्तु रावण ने नहीं माना।
शान्ति के सारे प्रयास असफल हो जाने पर युद्ध आरम्भ हो गया। लक्ष्मण और मेघनाद के मध्य घोर युद्ध हुआ। शक्तिबाण के वार से लक्ष्मण मूर्छित हो गये। उनके उपचार के लिये हनुमान सुषेण वैद्य को ले आये और संजीवनी लाने के लिये चले गये। गुप्तचर से समाचार मिलने पर रावण ने हनुमान के कार्य में बाधा के लिये कालनेमि को भेजा जिसका हनुमान ने वध कर दिया। औषधि की पहचान न होने के कारण हनुमान पूरे पर्वत को ही उठा कर वापस चले। मार्ग में हनुमान को राक्षस होने के सन्देह में भरत ने बाण मार कर मूर्छित कर दिया परन्तु यथार्थ जानने पर अपने बाण पर बैठा कर वापस लंका भेज दिया। इधर औषधि आने में विलम्ब देख कर राम प्रलाप करने लगे। सही समय पर हनुमान औषधि लेकर आ गये और सुषेण के उपचार से लक्ष्मण स्वस्थ हो गये।
रावण ने युद्ध के लिये कुम्भकर्ण को जगाया। कुम्भकर्ण ने भी रावण को राम की शरण में जाने की असफल मन्त्रणा दी। युद्ध में कुम्भकर्ण ने राम के हाथों परमगति प्राप्त की। लक्ष्मण ने मेघनाद से युद्ध करके उसका वध कर दिया। राम और रावण के मध्य अनेकों घोर युद्ध हुऐ और अन्त में रावण राम के हाथों मारा गया। विभीषण को लंका का राज्य सौंप कर राम, सीता और लक्ष्मण के साथ पुष्पकविमान पर चढ़ कर अयोध्या के लिये प्रस्थाramayan#
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शेर और भेड़: एक अनोखी जंगली कहानी#bedtime moral stories
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फुर्र - फुर्र हिंदी लोक कथा#hindi kahaniyan#Hindi kahaniya#Hindi story#stories in हिंदी#Hindi story
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फुर्र-फुर्र : हिंदी लोक-कथा
Furar Furar : Folk Tale in Hindi
एक जुलाहा सूत कातने के लिए रुई लेकर आ रहा था। वह नदी किनारे सुस्ताने के लिए बैठा ही था कि जोर की आँधी आई। आँधी में उसकी सारी रुई उड़ गई। जुलाहा घबराया--अगर बिना रुई के घर पहुँचा तो मेरी पत्नी तो बहुत नाराज़ होगी। घबराहट में उसे कुछ न सूझा। उसने सोचा, यही बोल दूँगा-फुर्र-फुर्र। और वह फुर्र-फुर्र बोलता जा रहा था। आगे एक चिड़ीमार पक्षी पकड़ रहा था।
जुलाहे की फुर्र-फुर्र सुनकर सारे पक्षी उड़ गए। चिड़ीमार को बहुत गुस्सा आया। वह जुलाहे पर बहुत चिल्लाया तुमने मुझे बरबाद कर दिया। आगे से तुम ऐसा कहना, पकड़ो! पकड़ो!
जुलाहा जोर-जोर से "पकड़ो! पकड़ो!" रटता गया। रास्ते में कुछ चोर रुपए गिन रहे थे। जुलाहे की "पकड़ो! पकड़ो!" सुनकर वे घबरा गए। फिर उन्होंने देखा कि अकेला जुलाहा ही चला आ रहा था। चोरों ने उसे पकड़ा और घूरते हुए कहा-यह क्या बक रहे हो? हमें मरवाने का इरादा है क्या? तुम्हें कहना चाहिए, इसको रखो, ढेरों लाओ, समझे ?
जुलाहा यही कहता हुआ आगे बढ़ गया-इसको रखो, ढेरों लाओ। जब वह श्मशान के पास से गुजर रहा था तो वहाँ गाँववाले शवों को जला रहे थे। उस गाँव में हैजा फैला हुआ था। लोगों ने जुलाहे को कहते सुना, 'इसको रखो, ढेरों लाओ', तब उन्हें बड़ा गुस्सा आया। वे चिल्लाए, तुम्हें शर्म नहीं आती है? हमारे गाँव में इतना भारी दुख फैला है और तुम ऐसा बकते हो। तुम्हें कहना चाहिए यह तो बड़े दुख की बात है।
जुलाहा शर्म से पानी-पानी हो गया। वह यही रटता हुआ आगे बढ़ने लगा-यह तो बड़े दुख की बात है। कुछ देर बाद वह एक बरात के पास से गुजरा। बरातियों ने उसे यह कहते हुए सुना, 'यह तो बड़े दुख की बात है, यह तो बड़े दुख की बात है।' इतना सुनकर वे जुलाहे को पीटने के लिए तैयार हो गए। बड़ी मुश्किल से उसने सफाई दी तो उन्होंने कहा-- सीधे से आगे बढ़ो, और हाँ, अब तुम यह रटते जाना-भाग्य में हो तो ऐसा सुख मिले।
अब जुलाहा यही रटता हुआ अपनी राह चल पड़ा। चलते-चलते अँधेरा हो गया। घर से निकलते समय उसकी पत्नी ने उससे यही कहा था कि "जहाँ रात हो जाए वहीं सो जाना।' जुलाहा थक भी गया था। वह वहां सो गया।"
अगले दिन जब सुबह उसके मुँह पर पानी पड़ा, तब जुलाहा हड़बड़ा कर उठा। आँखें खोलीं तो देखता ही रह गया-यह तो उसी का घर था। और अभी-अभी उसकी पत्नी ने ही उस पर पानी फेंका था। जुलाहे के मुँह से निकला-भाग्य में हो तो ऐसा सुख मिले।#Hindi story
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सत्येंद्रनाथ टैगोर - भारत में पहले भारतीय सिविल सेवा अधिकारी#History
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Satyendranath Tagore - First Indian Civil Service Officer in India
In 1863, Satyendranath Tagore was selected for the civil service and after finishing his education in England, he returned to India in 1864.
Meet Satyendranath Tagore, the first Indian to become an IAS officer almost 160 years ago
Satyendranath Tagore, Rabindranath Tagore's elder brother, was the first Indian to pass the Civil Services Examination in 1864. Satyendranath Tagore was the first Indian to be appointed to the Indian Administrative Service (IAS). In 1862, Satyendranath Tagore traveled from India to England to study for the examination. In 1863, he was selected for the Civil Service, and after finishing his education in England, he returned to India in 1864. He was the first Indian Administrative Service (IAS) officer of India. After that, he was posted to the Bombay Presidency and then after a few months to the city of Ahmedabad.
सत्येंद्रनाथ टैगोर - भारत में पहले भारतीय सिविल सेवा अधिकारी
1863 में, सत्येंद्रनाथ टैगोर को सिविल सेवा के लिए चुना गया और इंग्लैंड में अपनी शिक्षा समाप्त करने के बाद, वे 1864 में भारत लौट आए।
लगभग 160 साल पहले आईएएस अधिकारी बनने वाले पहले भारतीय सत्येंद्रनाथ टैगोर से मिलें
सत्येंद्रनाथ टैगोर, रवींद्रनाथ टैगोर के बड़े भाई, 1864 में सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले पहले भारतीय थे। सत्येंद्रनाथ टैगोर भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) में नियुक्त होने वाले पहले भारतीय थे। 1862 में, सत्येंद्रनाथ टैगोर ने परीक्षा के अध्ययन के लिए भारत से इंग्लैंड की यात्रा की। 1863 में, उन्हें सिविल सेवा के लिए चुना गया था, और इंग्लैंड में अपनी शिक्षा समाप्त करने के बाद, वे 1864 में भारत लौट आए। वे भारत के पहले भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अधिकारी थे। उसके बाद, उन्हें बॉम्बे प्रेसीडेंसी और फिर कुछ महीनों के बाद अहमदाबाद शहर में नियुक्त किया गया।
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